रंजीत सोनी
पृष्ठभूमि और उद्देश्य: पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में फार्माकोविजिलेंस साठ वर्षों से अधिक समय से कार्यरत है। होम्योपैथी, उपचार का दूसरा सबसे बड़ा तरीका होने के नाते, दुनिया भर में व्यापक रूप से प्रचलित है। इसलिए होम्योपैथी में फार्माकोविजिलेंस विशेष रूप से इसके सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाली दवाओं के उपयोग, भ्रामक और आपत्तिजनक विज्ञापनों की बढ़ती घटनाओं आदि जैसी कुप्रथाओं के मद्देनजर अपरिहार्य है। इस समीक्षा के माध्यम से हम होम्योपैथी में फार्माकोविजिलेंस की स्थिति का पता लगाएंगे। तरीके: होम्योपैथी में फार्माकोविजिलेंस के अभ्यास के संबंध में वेब पेजों, डेटाबेस, पत्रिकाओं, ग्रंथ सूची संसाधनों पर गहन साहित्य खोज की गई। होम्योपैथी के साहित्य के साथ-साथ मई 2020 तक उपलब्ध प्रकाशनों का विश्लेषण किया गया। परिणाम: होम्योपैथिक दवाओं से उत्पन्न होने वाले प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया (एडीआर) के आंकड़े साहित्य में नगण्य हैं। भारत सरकार ने आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी (एएसयूएंडएच) औषधियों के फार्माकोविजिलेंस की पहल की है, ताकि एएसयूएंडएच औषधियों के एडीआर और प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आपत्तिजनक विज्ञापनों की रिपोर्टिंग की जा सके और उनके खिलाफ कदम उठाए जा सकें। कुछ यूरोपीय देशों ने भी हर्बल और पारंपरिक चिकित्सा की फार्माकोविजिलेंस शुरू की है। होम्योपैथी शुरू से ही प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया के बारे में सावधान रही है, जो इसके साहित्य से स्पष्ट है, जिसमें उदाहरणों के साथ प्रतिकूल दवा घटनाओं/प्रतिक्रियाओं (एडीई/एडीआर) की आलोचनाओं से भरा पड़ा है। होम्योपैथी के जनक क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनिमैन (1755-1842) ने अपना पूरा जीवन कम से कम हानिकारक, कोमल और सरल चिकित्सा प्रणाली प्रदान करने में समर्पित कर दिया। निष्कर्ष: हालांकि होम्योपैथी में एडीआर का डेटा नगण्य है