विवेक मिश्रा, मंजरी मिश्रा, भूषण पी चौधरी, राज खन्ना और मुकुल दास
उद्देश्य: वर्तमान अध्ययन का उद्देश्य आर्जीमोन ऑयल (एओ) और बटर येलो (बीवाई) की विषाक्तता क्षमता का मूल्यांकन करना था।
विधियाँ: चूहों में यकृत ऊतक में अंतःपेटीय प्रशासन के माध्यम से अल्पकालिक उपचार और यकृत तथा यकृतेतर ऊतकों में आहार के माध्यम से दीर्घकालिक उपचार किया गया।
परिणाम: अल्पावधि अध्ययन से पता चला कि मादा चूहों में नर चूहों की तुलना में लीवर की क्षति से जुड़े जोखिम की संभावना अधिक थी। 180 दिनों तक आहार के माध्यम से AO (1%) और BY (0.06%) दिए गए मादा चूहों में आगे की जांच में वजन में उल्लेखनीय कमी और लीवर के वजन में वृद्धि देखी गई। AO और BY उपचारित चूहों में चरण I और चरण II एंजाइम, एंटीऑक्सीडेंट एंजाइम और ग्लूटाथियोन सामग्री में लिपिड पेरोक्सीडेशन (LPO) में सहवर्ती वृद्धि के साथ महत्वपूर्ण कमी देखी गई। AO और BY खिलाए गए जानवरों में यकृत के ऊतकों में तरल पदार्थ से भरे स्थानों और रक्तस्राव के पैच के साथ-साथ अत्यधिक हाइपरप्लासिया दिखाई दिया। AO उपचारित जानवरों में ट्यूमरजन्य वृद्धि देखी गई, जबकि BY उपचार के कारण यकृत के ऊतकों में कई गांठें बन गईं। हृदय, फेफड़े, गुर्दे और तिल्ली जैसे अन्य अंगों में भी पर्याप्त हिस्टोपैथोलॉजिकल परिवर्तन दिखाई दिए।
निष्कर्ष: परिणाम बताते हैं कि एओ और बीवाई उपचार ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा कर सकते हैं और चरण I और II एंजाइमों को बाधित कर सकते हैं, जिससे मूल यौगिक या उनके मेटाबोलाइट्स का संचय हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप यकृत और यकृतेतर ऊतकों में ट्यूमरजन्य/विषाक्त प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं।