रतीश सरीन
विकासशील देशों को एक ओर कुशल चिकित्सकों और रोग विशेषज्ञों की कमी और दूसरी ओर सीमित संसाधनों के साथ बढ़ती बीमारी के बोझ की दुविधा का सामना करना पड़ता है। टेलीपैथोलॉजी का तात्पर्य निदान और शिक्षा के उद्देश्य से डिजिटल छवियों के इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण से है। टेलीपैथोलॉजी स्थिर, गतिशील और आभासी हो सकती है। समय के साथ धीरे-धीरे विकसित होते हुए हमें संसाधनों की आवश्यकता और उपलब्धता के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। संचार चैनलों और हाई स्पीड इंटरनेट ब्रॉडबैंड में सुधार से यह तकनीक भारत में नियमित स्वास्थ्य देखभाल को पूरक बनाने में सक्षम होगी। टेलीपैथोलॉजी का भविष्य उज्ज्वल है और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को सभी हितधारकों द्वारा इसकी सार्वभौमिक स्वीकृति के लिए इसके प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है।