हरिओम वर्मा
मादक द्रव्यों के सेवन का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से ही पता लगाया जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि आधुनिक समय में मादक द्रव्यों के सेवन ने समाज के लिए एक खतरा बनकर बहुत अधिक वृद्धि की है। मादक द्रव्यों के सेवन में इस वृद्धि के साथ-साथ प्रिंट और दृश्य मीडिया में इसके प्रतिनिधित्व में भी वृद्धि हुई है। स्वतंत्रता के बाद का हिंदी सिनेमा मादक द्रव्यों के सेवन और इसके व्यापार के प्रति काफी संवेदनशील रहा है। मादक द्रव्यों के सेवन को दर्शाने वाली फिल्मों को दो व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: वे जो नशीली दवाओं के सेवन या लत को दर्शाती हैं और वे जो नशीली दवाओं के व्यापार पर केंद्रित हैं। फिल्मों में मादक द्रव्यों के सेवन को रोमांटिक माहौल में भी दिखाया जाता है। मादक द्रव्यों के सेवन के नकारात्मक पहलुओं का चित्रण स्वतंत्रता के बाद के हिंदी सिनेमा में एक हालिया चलन है, जो 50 और 60 के दशक के सिनेमा के विपरीत है। शोधपत्र में सुझाव दिया गया है कि इंटरनेट के वर्तमान युग में सिनेमा इस खतरे से निपटने के लिए एक अत्यधिक प्रभावी उपकरण साबित हो सकता है।