डॉ. संजय सिंधु
शिक्षा एक साधन के रूप में मनुष्य की उन्नति के लिए सबसे शक्तिशाली तंत्र है। शिक्षा मनुष्य को मुक्ति प्रदान करती है तथा अज्ञानता से मुक्ति दिलाती है। शिक्षा को अब मानव अधिकार तथा सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में देखा जा रहा है। मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 1948 के अनुच्छेद 26(1) के माध्यम से यह निर्धारित किया गया है कि सभी को शिक्षा का अधिकार है। शिक्षा निःशुल्क होगी, कम से कम प्रारंभिक तथा मौलिक चरणों में। इस प्रकार, संयुक्त राष्ट्र की संस्तुति को बच्चों के निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 के प्रावधानों में पुनः लागू किया गया है, जो 1 अप्रैल 2010 से प्रभावी हुआ। वास्तव में, यह अधिनियम शिक्षा के प्रति राज्य की जिम्मेदारी निर्धारित करता है। इस पत्र में लेखकों द्वारा अनुच्छेद 21-ए के तहत निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के संवैधानिक तथा विधायी परिप्रेक्ष्य को उजागर करने का प्रयास किया गया है। इस पत्र का उद्देश्य अनिवार्य शिक्षा के प्रति भारतीय प्रणाली के दृष्टिकोण का पता लगाना तथा मौजूदा RTE अधिनियम में खामियों को इंगित करना है।